ब्रेन अटैक और हार्ट डिजीज के इलाज के लिए उपलब्ध एडवांस टेक्नोलॉजी के बारे में जागरुक किया

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कानपुर, 16 फरवरी, 2020ः गतिहीन जीवनशैली, शराब का सेवन, धूम्रपान, एक्सरसाइज में कमी और स्वस्थ जीवन को लेकर लापरवाही के साथ, हृदय रोग युवाओं में भी एक आम समस्या बन गई है। इतना ही नहीं, विश्वस्तर पर होने वाली मौतों का मुख्य कारण हृदय रोगों को माना जा रहा है। लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हृदय रोगों की मृत्युदर से यह पता चलता है कि, 2015 में भारत में 2.1 मिलियन से अधिक लोगों की मौत हृदय रोगों के कारण हुई थी। इसमें स्ट्रक्चरल हार्ट डिजीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसमें सीएडी (कोरोनरी आर्टरी डिजीज), हाइपरट्रोफिक कार्डियोमायपैथी, दिल की विफलता और जन्मजात हृदय रोग आदि शामिल हैं।

अन्य जानलेवा बीमारियां, जैसे कि ब्रेन अटैक और पार्किंसन के लक्षणों, रोकथाम के तरीकों और इलाज के बारे में जागरुकता बढ़ाना आवश्यक है। दुनिया के सभी विकासशील देशों की तुलना में भारत में स्ट्रोक के मामले सबसे ज्यादा देखे जाते हैं, जहां हर साल लगभग 1.2 बिलियन आबादी में से 1.8 मिलियन भारतीय स्ट्रोक से ग्रस्त होते हैं। वहीं, पार्किंसन की बीमारी के मामले कम होते हैं, लेकिन इसमें व्यक्ति का उसके शरीर पर कोई जोर नहीं रह जाता है। इसमें मरीज के शरीर में कंपन की शिकायत होती है।

इन बीमारियों और इनके लिए उपलब्ध एडवांस इलाज के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत ने कानपुर में आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया।

संत्र के एक हिस्से को इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार और कार्डियक कैथ लैब के वरिष्ठ निदेशक, डॉक्टर विवेका कुमार ने संबोधित किया, जो मुख्य रूप से टीएवीआर पर आधारित था। जो मरीज अपनी स्थिति के कारण सर्जरी नहीं करा सकते हैं, टीएवीआर उन मरीजों के लिए कितनी सहायक है, इस बात पर मुख्य रूप से चर्चा की गई। ट्रांस्कैथेटर एऑर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) एक ऐसी प्रक्रिया है, जहां एऑर्टिक वॉल्व को पेरिफेरल आर्ट्रियल के जरिए इंप्लान्ट किया जाता है। अधिकतर मामलों में यह प्रक्रिया मरीज को बिना बेहोश किए पूरी की जाती है, जिसके बाद मरीज को 2-3 दिनों में अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है। जिन मरीजों के लिए सर्जिकल एऑर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (एसएवीआर) उपयुक्त नहीं होती है, वहां टीएवीआर के अच्छे परिणाम पाए गए हैं। विश्वस्तर पर, टीएवीआर को इलाज के एक बेहतर विकल्प के रूप में चुना गया है।

साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार और कार्डियक कैथ लैब के वरिष्ठ निदेशक, डॉक्टर विवेका कुमार ने टीएवीआर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि, “एऑर्टिक वॉल्व एक प्रकार की वॉल्व है, जिसकी मदद से रक्त हृदय से होते हुए सिस्टमिक सर्कुलेशन तक जाता है। इस वॉल्व के सिकुड़ने से दिल ठीक से काम नहीं कर पाता है। लंबे समय तक इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं। इस बीमारी से ग्रस्त लगभग 34ः मरीजों की अचानक मौत हो सकती है। एसएवीआर में सर्जरी के दौरान मरीज की मृत्यु का खतरा रहता है, जिसके कारण गंभीर मरीजों के मामलों में इसकी सलाह नहीं दी जाती है। चूंकि, डिजेनेरेटिव एस के मरीज बुजुर्ग होते हैं, इसलिए उनमें किडनी रोग, पल्मोनेरी रोग और लिवर रोग आदि घातक बीमारियां हो सकती हैं। ये सभी कारक एसएवीआर के खतरे को बढ़ाती हैं। यही वजह है कि ऐसे मरीजों की 30ः आबादी कभी एसएवीआर नहीं कराती है। लेकिन अब प्रगति के साथ, नई टेक्नोलॉजी की मदद से माइट्रल वॉल्व और पल्मोनेरी वॉल्व रिप्लेसमेंट आदि के मरीजों को पहले ही ठीक किया जा चुका है।”

इस सत्र के दूसरे हिस्से को न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक, डॉक्टर पुनीत अग्रवाल संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने देश में ब्रेन अटैक और पार्किंसन के बढ़ते मामलों पर बात की। उन्होंने बताया कि, जागरुकता में कमी के कारण ये बीमारियां घातक बन जाती हैं। इस सत्र में आगे बताया गया कि, पिछले कुछ सालों में नई दवाइयों और सर्जरी के नए विकल्पों की मदद से ब्रेन अटैक और पार्किंसन के इलाज के परिणाम बेहतर हुए हैं। डब्ल्युएचओ और वल्र्ड स्ट्रोक ऑर्गेनाइजेशन ने ‘फास्ट’ के नाम से एक स्मृति-विज्ञान तैयार की है, जिसमें एफ चेहरे की कमजोरी, ए हाथों की कमजोरी, एस बोलने में समस्या और टी इलाज की जरूरत को दर्शाता है। यदि किसी मरीज में ये लक्षण नजर आते हैं, तो बेहतर परिणामों के लिए उसे 6 घंटों के अंदर अस्पताल ले जाना आवश्यक होता है।

साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक, डॉक्टर पुनीत अग्रवाल ने बताया कि, “ हॉस्पिटल में मेरे इतने सालों के अनुभव में, नई तकनीकों की मदद से मैं एक्यूट ब्रेन के 800 से अधिक मरीजों का सफल इलाज कर चुका हूं। वहीं हॉस्पिटल में उपलब्ध रोबोटिक थेरेपी की मदद से अंतिम चरण वाले मरीजों का भी सफल इलाज किया है। पार्किंसन मरीज में धीरे-धीरे बढ़ता है, जहां सबसे पहले कोई एक हाथ कमजोर पड़ने के साथ उसमें कंपन की समस्या होती है। आज, अस्पताल में उपलब्ध नई दवाइयों और डीबीएस सर्जरी की मदद से इस प्रकार के मरीजों का सफल इलाज संभव है। अस्पताल की यूनिट ने आधुनिक इलाज की मदद से ब्रेन अटैक और पार्किंसन के कई मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया है।”