3 फीसदी दिव्यांगों को सियासी मुख्यधारा का हिस्सा बनाएं

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देश में इस समय चुनावी मौसम चल रहा है। लोकसभा चुनाव में राजनैतिक दल एक-एक सीट जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं और दूसरे दलों की नीतियों पर करारा प्रहार कर रहे हैं। सियासी विचारधाराओं के परस्पर विरोधी माहौल के बीच भारतीय दिव्यांग संगठन ने सभी राजनैतिक दलों, खासकर सत्तारूढ़ पार्टी, बीजेपी से आग्रह किया है कि तीन फीसदी आबादी वाले दिव्यांगों को राजनैतिक मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए। संगठन का कहना है कि सभी राजनीतिक दलों को कम से कम 2 दिव्यांग उम्मीदवारों को लोकसभा चुनाव में टिकट देना चाहिए।

भारतीय दिव्यांग संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित कुमार ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया का पहला दौर बीत रहा है, लेकिन अब तक किसी पार्टी ने एक भी दिव्यांग को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। अगर दिव्यांगों को छोड़ दिया जाए तो कई आठवीं या दसवीं पास लोगों को राजनैतिक दलों ने उम्मीदवार बनाकर उन्हें देश का भाग्य विधाता बना दिया है। माननीय मोदी जी के रहते ये क्यों मुमकिन नहीं हो रहा कि ज़्यादा एकाग्रता वाले दिव्यांग को राजनीति की मुख्य धारा में जगह मिल पाए।
भारतीय दिव्यांग संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि इस मामले में मीडिया का रोल बहुत अहम हो जाता है। मीडिया को देश के नेताओं और जनता को यह बताना चाहिए कि दिव्यांग राजनीति में कम सक्षम नहीं है और उनको उम्मीदवार बनाकर सम्मान और अधिकार देना देश के राजनैतिक दलों का कर्त्तव्य है। सभी जिम्मेदार नागरिकों को इस संबंध में अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।

पिछले महीने भारतीय दिव्यांग संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित कुमार दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि दिव्यांगो के लिए प्रतीकात्मक सम्मान देने की जगह उन्हें राजनैतिक मुख्यधारा का हिस्सा बनाना कितना आवश्यक है। तब अमित कुमार ने देश के कर्णधार राजनैतिक दलों से यह भी पूछा था कि क्या अपाहिज और अपंगों को महज़ दिव्यांग नाम दे देना काफी है क्या? उन्होंने कहा कि आज नेता एक-एक प्रतिशत वोट की लड़ाई लडने में हर तरह करतब कर रहे हैं, लेकिन 3 फीसदी दिव्यांगों को टिकट देने और विकलांगता से प्रभावित 10 फीसदी परिवारों को उनका हक देने मे ढुल मुल रवैया अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिव्यांग राजनीति में कम सक्षम नही हैं क्योंकि ve ज़्यादा एकाग्र हो कर काम करते हैं ,उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में ला कर सम्मान और उनका जायज अधिकार मिलना ही चाहिए।
उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात में चुनाव में दिव्यांगों को टिकट मिलना तो दूर, वह सम्मानपूर्वक अपना वोट डाल सकें, इसके भी पर्याप्त इंतजाम नहीं है। चुनाव आयोग स्वीकार किया है कि दिव्यांगों और बुजुर्गों के लिए सभी वोटिंग बूथ पर सौ फ़ीसदी रैंप तक नहीं बन पाएँगे । इस हालात में अगर राजनैतिक दलों और आयोग पर दिव्यांगों के कर्त्तव्यों और अधिकारों के हनन का आरोप लगाया जाए तो कुछ भी गलत नहीं होगा। भारतीय दिव्यांग संस्थान के अध्यक्ष अमित कुमार ने सभी राजनैतिक दलों से दिव्यांग उम्मीदवारों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व देने का मुद्दा भी उठाया है। उन्होंने कहा कि यह काम जल्द से जल्द होना चाहिए, ताकि दिव्यांग यह कह सकें कि हमारा सिर्फ नाम ही नहीं, जीवन बदला है।
भारतीय दिव्यांग संगठन ने मोदी सरकार से विकलांगता के प्रतिशत के आधार पर दिव्यांगों को पेंशन देने, दिव्यांग कार्ड मुहैया कराने, उनकी प्राइमरी से ग्रेजुएशन तक की शिक्षा मुफ्त करने और मुफ्त राशन देने सहित कई माँगे उठाई है ।