कॉर्निया प्रत्यारोपण : नई तकनीक ने दिखाई दुनिया

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नई दिल्ली : भारत में नेत्रहीनता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है कॉर्निया दृष्टिहीनता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि विश्व में कॉर्निया रोग से पीडि़त लगभग 68 लाख ऐसे लोग हैं जिनकी कम-से-कम एक आंख में 6/60 से भी कम दृश्यता है। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि सन 2020 तक भारत में कॉर्निया नेत्रहीनता के शिकार लोगों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा हो सकती हैं क्योंकि यदि राष्ट्रीय नेत्रहीनता नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीबी) के आंकड़ों पर यकीन करें तो देश में फिलहाल 1.20 लाख लोग कॉर्निया दृष्टिहीनता से पीडि़त हैं। लेकिन अच्छी खबर है यह है कि कॉर्निया दृष्टिहीनता का इलाज कॉर्निया ट्रांसप्लांट यानी प्रत्यारोपण से अब संभव हो गया है। कॉर्निया में आई खराबी के कारण यदि किसी की दृष्टि चली जाती है तो उसकी आंख के उस हिस्से में केराटोप्लास्टी तकनीक या लैमेलर केराटोप्लास्टी तकनीक से स्वस्थ कॉर्निया प्रत्यारोपित की जाती है। लेकिन कॉर्निया प्रत्यारोपण की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि अन्य अंगों की तरह इसे किसी प्रयोगशाला या फैक्टरी में नहीं बनाया जा सकता, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति द्वारा नेत्रदान किए जाने से ही प्रकृति-प्रदत्त कॉर्निया का प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइट की एडिशनल मेडिकल डायरेक्टर डॉ रितिका सचदेव का कहना है कि भारत में कॉर्निया दृष्टिहीन लोगों के लिए यह सबसे बड़ी बाधा है कि स्वस्थ व्यक्ति ऩेत्रदान के लिए आगे नहीं आते। यही वजह है कि देश में हर साल 25 से 30 हजार कॉर्निया दृष्टिहीनता के मामले बढ़ते जा रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति नेत्रदान करता है तो किसी कारणवश उसकी मृत्यु होने के कुछ घंटों बाद तक उसका कॉर्निया स्वस्थ रहता है जिसे नेत्रहीन व्यक्ति में आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। कॉर्निया प्रत्यारोपण की तकनीक को विकसित हुए लगभग सौ वर्ष हो चुके हैं जबकि नेत्र बैंक की स्थापना को 50 वर्ष। इसके बावजूद बहुत सारे लोगों को पता नहीं है कि नेत्रदान कहां और कैसे किया जाए और इसके क्या फायदे हो सकते हैं।

डा. रितिका सचदेव का कहना है कि आप जब कमजोर नजर की शिकायत लेकर आंखों के डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह जांच करने के बाद कुछ खास परिस्थितियों में कॉर्निया ट्रांसप्लांट कराने की सलाह देते हैं। कॉर्निया ट्रांसप्लांट की सलाह आंखों में तकलीफ के इन लक्षणों के बाद दी जाती है:आई हर्पीज, फंगल या बैक्टीरियल केराटिटिस जैसे संक्रमण के लक्षण। आनुवांशिक कॉर्निया रोग या कुपोषण। केराटोकोनस के कारण कॉर्निया का पतला होने या आकार बिगडऩे के कारण। रासायनिक दुष्प्रभाव के कारण कॉर्निया के क्षतिग्रस्त होने के कारण। कॉर्निया में अत्यधिक सूजन आने के कारण।

कॉर्निया दरअसल आंखों की ऊपरी परत होता है। यह स्पष्ट और गुंबदनुमा सतह होता है जो आंख के सामने वाले हिस्से को कवर करता है। कॉर्निया आंख की फोकसिंग क्षमता को 2/3 गुना अधिक करने की जिम्मेदारी निभाता है। शरीर के अन्य टिश्यू के विपरीत कॉर्निया की संक्रमण से सुरक्षा या इसके पोषण के लिए इसमें कोई रक्त नलिका नहीं होती। इसके बजाय हमारा कॉर्निया अपने पीछे बने चैंबर में आंसुओं और आंखों के पानी से ही पोषित होता रहता है। अच्छी दृष्टि के लिए कॉर्निया की सारी परतों को धुंधलाहट या अपारदर्शिता से मुक्त होना जरूरी होता है। जब किसी रोग, जख्म, संक्रमण या कुपोषण के कारण कॉर्निया पर धुंधली परत जम जाती है तो हमारी दृष्टि खत्म या कमजोर पड़ जाती है। हाल के दशक में लैमिलर ग्राफ्ट तकनीक का आविष्कार होने से कॉर्निया की अलग-अलग परतों का प्रत्यारोपण संभव हो पाया है। यह थोड़ी जटिल तकनीक है लेकिन इसके परिणाम काफी सफल रहे हैं। इसमें मरीज का संपूर्ण कॉर्निया नहीं बदला जाता है बल्कि उसकी क्षतिग्रस्त आंतरिक या बाहरी किसी भी परत को बदल दिया जाता है।