फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल, ओखला, नई दिल्ली द्वारा लखनऊ में पहली किडनी ट्रांसप्लांट ओपीडी सेवा का शुभारंभ

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नई दिल्ली , 15 जनवरी, 2019। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल मरीज़ों को चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने का तीन दशक लंबा अनुभव रखने वाला ओखला का यह अस्पताल अब लखनऊ में अजंता अस्पताल के नाम से ‘सुपर स्पेशियलिटी किडनी सेवा’ शुरू कर रहा है। यह इस अग्रणी हेल्थकेयर अस्पताल द्वारा क्वालिटी हेल्थकेयर उपलब्ध कराने के मकसद से किया गया एक और सार्थक प्रयास है।

ओपीडी सेवा रीनल ट्रांसप्लांट एवं नेफ्रोलॉजिकल रोगों के लिए हर तीसरे बुधवार को सवेरे 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक चालू रहेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस सेवा के चलते लखनऊ और आसपास के इलाकों के मरीज़ों एवं यहां के निवासियों को फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल, नई दिल्ली के विषेशज्ञों का लाभ लगातार मिलता रहेगा।

डॉ. (प्रोफेसर) संजीव गुलाटी, डायरेक्टर-नेफ्रोलॉजी ऐंड रीनल ट्रांसप्लांट, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स किडनी ऐंड यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली एवं पूर्व एडिशनल प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ नेफ्रोलॉजी, एसजीपीजीआईएमएस, लखनऊ ने कहा, ‘इस ओपीडी सेवा के माध्यम से हम मरीज़ों तथा उनके परिवारवालों को किडनी की समस्याओं से कैसे बचें, उस बारे में बताएंगे। सावधानी बरत कर किडनी ट्रांसप्लांट से भी बच सकते हैं मरीज। ऐसा करने से न केवल डायलसिस का खर्च बचेगा, बल्कि सर्जरी के बाद जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाएगी।’ ज्ञात हो कि डॉ. गुलाटी गुर्दा रोगों के क्षेत्र में अग्रणी विषेशज्ञ हैं और उन्हें इस राज्य में 25 साल से अधिक समय से लोगों की सेवाएं करने का अनुभव हासिल है।

यहां यह बता देना जरूरी है कि रीनल साइंसेज के क्षेत्र में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के अंतर्गत यूरोलॉजी तथा नेफ्रोलॉजी शामिल है और यह क्षेत्र में रीनलकेयर के लिए प्रमुख रेफरल सेंटर बन चुका है। संक्रमण के जोखिम को कम से कम रखने के लिए डायलिसिस यूनिट में क्वालिटी सेवाएं सुनिश्चित की जाती हैं, जो एक नियंत्रित वातावरण में डायलिसिस सेवाएं प्रदान करती हैं। डॉ. गुलाटी ने आगे कहा, ‘हर साल, 2 लाख से अधिक मरीज़ों को किडनी ट्रांसप्लांट कराने का इंतज़ार रहता है, जबकि डोनर सिर्फ 15000 ही होते हैं। यानी हर साल सिर्फ 0.02 प्रतिशत रीनल ट्रांसप्लांट की जरूरत ही पूरी होती है, जो कि इस बारे में जागरूकता के अभाव और लाइव डोनर ट्रांसप्लांट के लिए परिजनों के स्तर पर संकोच का परिणाम है। भारत में मधुमेह के रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि के चलते क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ (सीकेडी) मरीज़ों की संख्या भी बढ़ती है। जागरूकता के अभाव में मरीज़ एंड स्टेज डायलिसिस में ही मदद के लिए आते हैं, जबकि ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प बचता है। हालांकि टेक्नोलॉजी में लगातार प्रगति के चलते रीनल ट्रांसप्लांट के तौर-तरीकों में काफी बदलाव आया है, जो कि सर्जरी की वजह से पैदा होनेवाली जटिलताओं के लिए मिनीमल इन्वेंसिव तरीकों को अपनाए जाने की वजह से संभव हो सका है।’

इस विषय पर डॉ. कौसर अली शाह, ज़ोनल डायरेक्टर, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल ने भी अपना अनुभव शेयर किया, ‘इस प्रकार की सेवाएं उपलब्ध कराकर हम किडनी समस्याओं का जल्द से जल्द पता लगाने के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहते हैं, जो कि सच तो यही है कि किसी बड़ी परेशानी के सामने आने तक उपेक्षित रहते हैं।’ उन्होंने अपनी बात जारी रखी, ‘दरअसल, किडनी रोग दिन ब दिन बढ़ रहे हैं और इस पहल के जरिए हम समाज को किडनी समस्याओं से बचने के लिए आवश्यक सावधानियां बरतने के बारे में जानकारी देना चाहते हैं, ताकि यह रोग आगे चलकर किसी महामारी का रूप न ले ले। वैसे, सावधानी के बारे में बताकर हमने मरीज़ों और उनके परिजनों को भी किडनी रोगों से बचाव के बारे में शिक्षित किया है।’