उम्र बढऩे के साथ ही शरीर के अंग बेवफाई करने लगते हैं। बुढ़ापा आने की सबसे पहली निशानी शायद जोड़ों का दर्द होती है। उम्र बढऩे के साथ ही लोग जोड़ों के दर्द से परेशान होने लगते हैं। बहुत से उपाय करने के बाद भी दर्द से निजात पाना मुश्किल होता है। परंतु अब शल्य चिकित्सा विज्ञान में उपलब्ध तकनीकों द्वारा इस रोग से छुटकारा पाना संभव है। अब बिना शल्य क्रिया (सर्जरी) के ही साइट्रोन चिकित्सा से इस पर काबू पाया जा सकता है। बायो-इलेक्ट्रोनिक उत्तक के कारण घुटने के कार्टिलेज दोबारा भी विकसित हो सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें रोगी को किसी प्रकार की तकलीफ का अनुभव भी नहीं होता है। आमतौर पर आर्थाइटिस के बारे में कई तरह की गलत धारणाएं प्रचलित हैं। सिबिया मेडिकल सेंटर के निदेशक डा. एस.एस. सिबिया का कहना है कि आमतौर पर लोगों को पूरी जानकारी न होने के कारण शरीर में हड्डिïयों या मांसपेशियों में हर दर्द को आर्थाइटिस मान लेते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं हैं। तो आखिर क्या है यह आर्थाइटिस? तो वास्तव में जोड़ों में होने वाले शोध या जलन को आर्थाइटिस कहा जाता है और इससे शरीर के केवल जोड़ ही नहीं बल्कि कई अंग भी प्रभावित होते हैं। इससे शरीर के विभिन्न जोड़ों पर प्रभाव पड़ता है। वैसे तो आथ्र्राइटिस कई तरह के होते हैं। पर खास तौर से चार तरह के आथ्र्राइटिस ही देखने में आते हैं-रयूमेटाइड आर्थइटिस,आस्टियो आर्थाइटिस गाउरी आर्थाइटिस और जुनेनाइल आर्थाइटिस।
कार्टिलेज के अंदर तरल व लचीला उत्तक होता है जिससे जोड़ों में संचालन हो पाता है और जिसकी वजह से घर्षण में कमी आती है। हड्डïी के अंतिम सिरे में शॅार्क अब्जार्बर लगा होता है, जिससे फिसलन संभव हो पाता है। जब कार्टिलेज(उपास्थि)में रासायनिक परिवर्तन के कारण उचित संचालन नहीं हो पाता है,तब ऑस्टियोआर्थराइटिस की स्थिति हो जाती है। जोड़ों में संक्रमण के चलते कार्टिलेज के अंदर रासायनिक परिवर्तन के कारण ही ऑस्टियोआर्थ-राइटिस होता है। यह तब होता है,जब हड्डिïयों का आपस में घर्षण ज्यादा होता है। इसके लक्षण जैसे कि जोड़ों में दर्द व कड़ापन,क ार्टिलेज में झझरी जैसी आवाज(ग्रेटिंग साउंड),चलने-फिरने में परेशानी,जोड़ों में सूजन,जोड़ों का विकृत होना.
डा. एस.एस. सिबिया का कहना है कि अब तक इसका स्थायी इलाज संभव नहीं था। दर्द से छुटकारा पाने के लिए दर्द निवारक दवाओं के अलावा प्राकृतिक चिकित्सा आदि की सहायता से रोगी को तात्कालिक राहत प्रदान करने की कोशिश की जाती रही है। वजन कम करने व आराम करने और उपयुक्त आहार लेने का सुझाव भी दिया जाता है। अत्याधिक परेशानी की स्थिति में शल्य चिकित्सा की मदद भी ली जाती है, जिसमें कार्टिले का अच्छा-खासा नुकसान हो जाता है।
डा. एस.एस. सिबिया के अनुसार अब बिना शल्य क्रिया (सर्जरी) के ही साइट्रोन चिकित्सा से इस पर काबु पाया जा सकता है। बायो-इलेक्ट्रोनिक उत्तक के कारण घुटने के कार्टिलेज दोबारा भी विकसित हो सकते हैं। जिस जगह को ठीक करना होता है,उस जगह पर साइट्रोन के द्वारा उच्च तीव्रता वाला इलेक्ट्रोमैग्रेटिक बीम का प्रयोग किया जाता है।