भारतात्मा अशोक सिंघल वैदिक पुरस्कार से सम्मानित पंकज कुमार शर्मा ने वैदिक साहित्य के अध्ययन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि वेदों को देश-विदेश में गौरवशाली सम्मान दिलाना उनके जीवन का लक्ष्य है। पंकज कुमार शर्मा ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “प्राचीन काल में वेदों को मिले सर्वोच्च स्थान से ही भारत को आध्यात्मिकता की भूमि माना जाता था। मेरे जीवन का उद्देश्य भारत और विदेश में वेद विद्या का प्रचार-प्रसार करना है। इस पुरस्कार से मुझे अपने लक्ष्य की ओर तीव्र गति से आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलेगा।”
पंकज कुमार शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश के पालसोडा गांव में हुई। वेद अध्ययन के लिए उन्होंने राजस्थान के श्री महादेव शिशु गुंजन वेद संस्थान गुरुकुल में प्रवेश किया। वहां उन्होंने वेदमूर्ति मधुर जी जोशी गुरुजी के सान्निध्य में शुक्ल यजुर्वेद का अध्ययन किया। वेदों के साथ ही पंकज ने आधुनिक साहित्य का भी अध्ययन किया है।
विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल की याद में वैदिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार और प्रोत्साहन के लिए सिंघल फाउंडेशन की ओर से ‘भारतात्मा अशोक सिंघल वैदिक पुरस्कार’ में सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी के रूप में पंकज कुमार शर्मा का चयन किया गया, जिन्हें तीन लाख रुपये की राशि प्रदान की गई। सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार श्रीधर अडि को दिया गया, जिन्हें पांच लाख रुपये पुरस्कार राशि के रूप में प्रदान किए गए। सर्वश्रेष्ठ वैदिक स्कूल के रूप में श्री सदगुरु निजानंद महाराज वेद विद्यालय का चयन किया गया। संस्थान को सर्वश्रेष्ठ वैदिक स्कूल के पुरस्कारस्वरूप सात लाख रुपये की राशि प्रदान की गई।
नई दिल्ली में 25 सितम्बर को आयोजित समारोह में स्वामी गोविंद गिरि ने विजेताओं को पुरस्कार से सम्मानित किया।
इस अवसर पर स्वामी गोविंद गिरि ने कहा, “आज वेदों को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसके वे हकदार हैं। इन पुरस्कारों के माध्यम से वेदों को आम लोगों के बीच पुन:स्थापित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, इसलिए वैदिकों को भी सम्मानित किया जाना जरूरी है। सिंघल फाउंडेशन की ओर से आज पूरे देश में 34 वेद विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। वैदिक होने का मतलब गरीब होना नहीं, बल्कि तेजस्वी होना है।”
पुरस्कार समारोह में विशिष्ट वेदार्पित जीवन पुरस्कार (वेदों के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार) विनायक मंगलेश्वर बादल को दिया गया। 8 अगस्त 1938 को काशी के वैदिक परिवार में जन्मे बादल ने अपने पिता से वेदों की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। अपने पिता से उन्होंने लुप्त हो रही शतपथ ब्राह्मण विद्या का अध्ययन किया और अपने दो शिष्यों को इस विद्या में पारंगत किया।
शास्त्रीय वैदिक धर्म ग्रंथों के पारंपरिक सर्वश्रेष्ठ अध्ययन के लिए विनायक को चारों पीठ के शंकराचार्य की ओर से सम्मानित किया गया। वह अब तक 150 से ज्यादा छात्रों को वैदिक शिक्षा प्रदान कर चुके हैं। बादल की छह पीढ़ियां वेदों के अध्ययन और अध्यापन में शामिल रही हैं। उनकी सातवीं पीढ़ी के रूप में उनके दोनों पुत्र वेदों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
समारोह में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार पाने वाले श्रीधर अडि ने ऋग्वेद क्रमांत हरिहर वेद विद्यालय से अध्ययन किया। उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पूर्व मध्यमा से लेकर अथर्ववेदाचार्य प्रथम श्रेणी में स्वर्णपदक प्राप्त किया। श्रीमेघादक्षिण मूर्तिवेद भवन विद्यालय में अथर्ववेद के प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए। वह बाद में यहां पर प्रधानाचार्य भी नियुक्त हुए।
सर्वश्रेष्ठ वैदिक स्कूल के रूप में चयनित महाराष्ट्र के आलंदी में स्थित सदगुरु निजानंद महाराज वेद विद्यालय की स्थापना 1991 के विजयदशमी पर्व के दौरान की गई। मात्र 27 वर्षो में इस विद्यालय से 272 वेद छात्रों, वेद के 24 अध्यापकों और 4 घनपाठी भारतमाता की सेवा में समर्पित किए हैं। विश्व हिंदू परिषद के दिल्ली स्थित वेद विद्यालय समेत कई वेद विद्यालयों में सदगुरु निजानंद महाराज वेद विद्यालय से निकले छात्र और गुरुजन वैदिक ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं।